रमेश की ईमानदारी और मेहनत

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक गरीब किसान रमेश रहता था। रमेश का जीवन संघर्षपूर्ण था, लेकिन वह हमेशा मेहनत और ईमानदारी से काम करता था। उसके पास एक छोटा सा खेत था, जहां वह दिन-रात मेहनत करके फसल उगाता था।

रमेश की ईमानदारी और मेहनत

रमेश की ईमानदारी और मेहनत

एक दिन, रमेश अपने खेत में काम कर रहा था, तभी उसे जमीन में कुछ चमकता हुआ दिखाई दिया। उसने उत्सुकतावश उस स्थान को खोदा और एक प्राचीन मूर्ति पाई। वह मूर्ति सोने की थी और अत्यंत सुंदर थी। रमेश को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।

रमेश ने सोचा, “अगर मैं इस मूर्ति को बेच दूं तो मुझे बहुत पैसे मिल सकते हैं। लेकिन यह सही नहीं होगा। मुझे इस मूर्ति को गाँव के मंदिर में ले जाकर दान कर देना चाहिए।”

रमेश ने अपने विचार को अपने परिवार से साझा किया। उसकी पत्नी ने कहा, “तुम सही कह रहे हो। हमें इस मूर्ति को भगवान के चरणों में अर्पित कर देना चाहिए। इससे गाँव का भला होगा।”

अगले दिन, रमेश ने गाँव के प्रधान और अन्य लोगों को बुलाया और उन्हें मूर्ति दिखाते हुए अपने इरादे बताये। गाँव के सभी लोग रमेश की ईमानदारी और धार्मिकता की प्रशंसा करने लगे। प्रधान ने कहा, “रमेश, तुम्हारा यह काम बहुत महान है। भगवान तुम्हें इसका फल अवश्य देंगे।”

रमेश और गाँव के लोग मिलकर उस मूर्ति को मंदिर में स्थापित कर दिए। तभी से गाँव में खुशहाली आने लगी। फसलें अच्छी होने लगीं, बारिश समय पर होने लगी, और गाँव के लोग सुखी और समृद्ध होने लगे।

इस घटना के बाद, रमेश और उसका परिवार भी सुखी रहने लगा। लोग उसकी ईमानदारी और परिश्रम की मिसाल देने लगे। गाँव में हर कोई रमेश का सम्मान करता और उसकी कहानियाँ सुनाया करता।

इस प्रकार, रमेश की सच्चाई और ईमानदारी ने न केवल उसे बल्कि पूरे गाँव को खुशहाल बना दिया। कहते हैं, “ईमानदारी और मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है।” रमेश की कहानी आज भी गाँव के बच्चे-बच्चे की जुबान पर है, जो उन्हें सच्चाई और मेहनत का महत्व सिखाती है।

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